MANGALURU MOB LYNCHING CASE! दो महीने बाद भी नहीं मिला इंसाफ़, मंगलुरु में मुस्लिम रैगपिकर की मॉब लिंचिंग, रिपोर्ट ने बताया ‘नफरत से जन्मा अपराध’…

Azad Reporter desk: 27 अप्रैल 2025 के दिन एक ऐसी घटना घटी जिसने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या भारत में अल्पसंख्यकों की जान की कीमत बाकी नागरिकों से कम है? केरल का रहने वाला मोहम्मद अशरफ जो कूड़ा कचरा बेचकर अपना गुज़ारा करता था कर्नाटक के मंगलुरु के पास कुडुपु गांव में एक स्थानीय क्रिकेट ग्राउंड के पास सिर्फ एक खाली पानी की बोतल उठाने के चलते भीड़ का शिकार बन गया। उसे इतनी बेरहमी से पीटा गया कि उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
अब इस दिल दहला देने वाली घटना पर तीन संगठनों People’s Union for Civil Liberties (PUCL), Association for Protection of Civil Rights (APCR) और All India Lawyers Association for Justice (AILAJ) ने मिलकर एक 164 पेज की स्वतंत्र जांच रिपोर्ट जारी की है जिसका नाम है “लॉस्ट फ्रेटरनिटी: एक मॉब लिंचिंग इन ब्रॉड डे लाइट संविधान के वादे से विश्वासघात”।
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यह कोई अचानक हुई हिंसा नहीं थी बल्कि 22 अप्रैल को पहलगाम (कश्मीर) में हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में नफरत का माहौल बना उसका यह सीधा परिणाम था। रिपोर्ट कहती है कि “नफरत भरी अफवाहों और प्रचार का असर यह हुआ कि लोगों ने नफरत को अपना स्वभाव बना लिया। इसी नफरत के चलते एक गरीब ररद्दी चुनने वाला को सरेआम पीट-पीट कर मार दिया गया।
CCTV फुटेज में दिखा कि अशरफ एक बोरी में कूड़ा भरते हुए धीरे-धीरे चल रहा था। इसी बीच एक युवक सचिन ने उस पर हमला शुरू किया और फिर ग्राउंड में मौजूद अन्य लोग भी उस पर टूट पड़े।
अशरफ के भाई जबर ने बताया कि
“हमें घटना के बारे में तब पता चला जब पुलिस ने एक कबाड़ी वाले के फोन से अशरफ की आखिरी कॉल ट्रेस की।” परिवार का आरोप है कि पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया भी उन्हें बिना बताए पूरी कर ली गई।
रिपोर्ट में पुलिस पर भी गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं। कहा गया कि पुलिस ने FIR दर्ज करने में देर की, सुप्रीम कोर्ट के मॉब लिंचिंग से जुड़े दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया, जांच में पक्षपात और निष्क्रियता दिखी।
तीनों संगठनों ने सरकार से ये मांगे रखीं कि जांच को CID को सौंपा जाए, पीड़ित परिवार के लिए मुआवजा और विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति होनी चाहिए, सरकार सिविल सोसाइटी के साथ बैठक करे ताकि नफरत को रोकने के उपाय तय हो सकें
रिपोर्ट इस बात की गवाही देती है कि देश में नफरत कितनी गहराई तक जा चुकी है जहां अब एक पानी की बोतल उठाना भी जानलेवा हो सकता है शायद अगर आपकी पहचान एक विशेष समुदाय है।
अब सवाल यह है क्या सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर इस नफरत की आग को बुझाने के लिए तैयार हैं या फिर ऐसी घटनाएं और भी बढ़ेंगी?