जमशेदपुर में सैफ अली की रहस्यमयी मौत: परिवार का आरोप बगैर सूचित किए शव दफनाने के बजाय जलाया गाय, क्या ऐसी होती है पुलिस की करवाई ?
“जमशेदपुर, एक शहर जो अपने स्टील उद्योग के लिए जाना जाता है, आज एक ऐसी घटना की वजह से चर्चा में है, जो पुलिस की लापरवाही, सिस्टम की खामियों, और एक परिवार के टूटे दिल की कहानी बयां करती है।

यह कहानी है 26 साल के सैफ अली की, जो अपने सपनों और परिवार की उम्मीदों को पीछे छोड़, एक रहस्यमयी मौत का शिकार हो गया। लेकिन इस दुखद कहानी में सबसे बड़ा सवाल यह है—क्या पुलिस की समय रहते कार्रवाई सैफ को बचा सकती थी? और क्यों एक मुस्लिम युवक का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से कर दिया गया?
“11 अप्रैल, 2025 को जुगसलाई के रहने वाले सैफ अली अपने घर से निकले। उन्होंने परिवार को बताया कि वे एक महिला, पम्मी, से शादी करना चाहते हैं। परिवार ने इस रिश्ते का विरोध किया इसके बाद सैफ न तो घर लौटा और न ही उसका कोई अता-पता चला। परिजनों ने बताया कि उन्होंने जुगसलाई थाने के कई चक्कर काटे, गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराने की गुहार लगाई, लेकिन थाने में उनकी नहीं सुनी गई। अब सवाल उठता है—पुलिस ने सैफ की गुमशुदगी को गंभीरता से क्यों नहीं लिया? क्या एक युवक की जान इतनी सस्ती है?

“”13 दिन बाद, 24 अप्रैल को बागबेड़ा थाना क्षेत्र के रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी के एक खाली क्वार्टर से एक अज्ञात शव बरामद हुआ। पुलिस ने शव को मॉर्चुरी में रखा लेकिन 72 घंटे तक कोई परिजन सामने न आने पर, पुलिस ने बिना किसी गहन जांच के, 29 अप्रैल को उस शव का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से जुगसलाई पार्वती बर्निंग घाट पर कर दिया। पुलिस का दावा है कि शव सड़ चुका था और उसकी पहचान संभव नहीं थी।

“3 मई को दोपहर 3 बजे, सैफ की बहन शब्बो को सूचना मिली कि बागबेड़ा में एक शव मिला था। जब वे बागबेड़ा थाने पहुंचीं और सैफ की तस्वीर दिखाई, तो सच्चाई ने उनके पैरों तले जमीन खिसका दी। वह शव कोई और नहीं, उनके भाई सैफ अली का था।
एक मुस्लिम परिवार का बेटा, जिसे उसके धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार कब्रिस्तान में दफनाया जाना चाहिए था, उसका अंतिम संस्कार हिंदू मान्यताओं के साथ कर दिया गया। शब्बो का कहना है, ‘पुलिस ने बताया कि मौत करंट से हुई, लेकिन हमें लगता है कि यह हत्या है। अगर पुलिस ने समय पर कार्रवाई की होती, तो शायद मेरा भाई आज जिंदा होता।'”हमारा बेटा, हमारा भाई… हमें उसकी आखिरी विदाई का मौका तक नहीं मिला। पुलिस ने हमारी शिकायत क्यों नहीं सुनी?
“”सैफ के परिवार का गुस्सा जायज है। वे सवाल उठा रहे हैं—आखिर पुलिस ने गुमशुदगी की शिकायत क्यों नहीं दर्ज की? शव की पहचान के लिए गहन जांच क्यों नहीं की गई? क्या सैफ के शरीर पर कोई धार्मिक चिह्न, कपड़े, या अन्य संकेत नहीं थे, जिनसे उसका धर्म पहचाना जा सकता था? और सबसे बड़ा सवाल—क्या यह सिर्फ लापरवाही थी, या सिस्टम का पूर्वाग्रह, जिसने एक मुस्लिम युवक के शव को हिंदू रीति से जलाने का फैसला लिया?””बागबेड़ा थाने के एक पुलिसकर्मी, ने बताया कि शव सड़ चुका था और अखबार में इश्तिहार देने के बावजूद कोई परिजन नहीं आए। इसके बाद शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया और फिर पार्वती बर्निंग घाट में एक संस्था के द्वारा अंतिम संस्कार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि परिवार एफआईआर दर्ज कराने के लिए स्वतंत्र है और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने पर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन यह जवाब सैफ के परिवार के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। परिवार का कहना है कि पुलिस ने हत्या के मामले को दबाने की कोशिश की। वे मांग कर रहे हैं कि इस मामले में हत्या का केस दर्ज हो और जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई की जाए।””सैफ की मौत एक रहस्य बनकर रह गई है। क्या यह वाकई करंट से हुई मौत थी, जैसा कि पुलिस दावा कर रही है? या इसके पीछे कोई साजिश थी, जिसे पुलिस ने अनदेखा कर दिया? और सबसे अहम—जुगसलाई पुलिस ने सैफ की गुमशुदगी की शिकायत को नजरअंदाज क्यों किया? यह सवाल न सिर्फ सैफ के परिवार, बल्कि पूरे जमशेदपुर को झकझोर रहे हैं।””सैफ का परिवार आज दर्द और गुस्से में डूबा है। वे अपने बेटे, भाई की आखिरी विदाई का हक मांग रहे हैं। यह कहानी सिर्फ सैफ की नहीं, बल्कि हर उस परिवार की है, जो सिस्टम की खामियों का शिकार बनता है। क्या सैफ को इंसाफ मिलेगा? क्या दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई होगी? और क्या भविष्य में ऐसी लापरवाही को रोका जा सकेगा?