क्या डिजिटल दुनिया के दौर में जमशेदपुर खुदगर्ज़ होता जा रहा है?सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे Dhoom के मामले में कुछ यही नज़र आ रहा है || Special Story

क्या डिजिटल दुनिया में ख़ुद के फ़ायदे के लिए जमशेदपुर के लोग खुदगर्ज़ हो गए है ? Dhoom के मामले में कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है
आख़िर कौन है यह Dhoom? जो हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर इतनी तेज़ी से वायरल हो रहा है
अगर आप जमशेदपुर के हैं और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं तो शायद आपने भी इस नाम को अब तक कई बार सुना होगा। जी हां अगर आप अभी इंस्टाग्राम पर जाकर #Dhoom सर्च करेंगे तो आपको उसके रील वीडियो तुरंत मिल जाएंगे।
Dhoom कोई मशहूर चेहरा नहीं न ही कोई सेलिब्रिटी। वह तो एक बेहद साधारण इंसान है जमशेदपुर के बागबेड़ा में कचरा चुनकर अपना गुज़र-बसर करने वाला। अक्सर वह कचरा टाल के आसपास दिख जाता है। एक ऐसा आदमी जिसके न आगे कोई है न पीछे कोई… पूरी तरह अकेला… रातें भी सड़क किनारे गुज़ारता है।
लेकिन यह साधारण सा इंसान उस दिन लोगों की नज़रों में आया जब कुछ लोग उसके पास पहुंचे और उसके साथ वीडियो बनाने लगे। फिर क्या था वह वीडियो देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। लाखों व्यूज़ आने लगे और इसी के बाद शुरू हुआ लोगों का आना-जाना। अब लोग उससे मिलने जाते हैं, उसके साथ वीडियो बनाते हैं और सोशल मीडिया पर डाल देते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि Dhoom के साथ बनाया गया वीडियो मिलियन व्यूज़ लाएगा।
पर सोचने वाली बात यह है… लोग वीडियो तो उसके साथ बना लेते हैं लेकिन क्या कोई उससे पूछता है कि उसे क्या चाहिए? वह तो बस एक अकेला इंसान है जो कहीं भी ज़मीन पर सोकर रात गुज़ार देता है। न उसके पास पहनने को ठीक कपड़े हैं न खाने का इंतज़ाम न रहने की कोई जगह।
वो कहते हैं ना “मजबूर की मजबूरी का फायदा हर कोई उठा लेता है।” क्योंकि दुनिया का यही दस्तूर है यहाँ कमजोर का फायदा उठाना सबसे आसान काम है।
और शायद Dhoom के मामले में यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। उसकी मजबूरी उसकी अनजानियाँ और सोशल मीडिया की समझ न होना आज उन लोगों का सबसे बड़ा हथियार बन गया है जो सिर्फ अपने लाइक्स और व्यूज़ बढ़ाने के लिए उसके आसपास मंडराते हैं। वे उसके पास जाते हैं उससे ठिठोली करते हैं उसका मज़ाक उड़ाते हैं वीडियो बनाते हैं और सोशल मीडिया पर डाल देते हैं। उन वीडियो से लोगों को लाइक्स भी मिलते हैं व्यूज़ भी… लेकिन Dhoom? बेचारा तो यह तक नहीं समझ पाता कि उसके साथ हो क्या रहा है। उसकी मासूमियत उसकी लाचारी ही कंटेंट बन जाती है।
और अगर आपने उसके वीडियो ध्यान से देखें होंगे तो एक बात साफ़ दिखती है उसे नशे की आदत बहुत ज्यादा है। अधिकतर समय वह नशे की हालत में ही रहता है। शायद यही वजह है कि उसे और भी कम समझ आता है कि उसके साथ क्या हो रहा है। इतने सारे लोग उससे मिलने पहुंचते हैं हंसी-मज़ाक करते हैं… लेकिन क्या एक पल के लिए भी किसी के मन में यह सवाल आया कि
“उसे नशा छुड़वाया जाए?”
क्योंकि उसे भी हक है एक नॉर्मल, सम्मानजनक ज़िंदगी जीने का। अगर वह किसी मजबूरी, किसी दर्द, किसी जीवन-घटना की वजह से नशे का आदी बन गया है तो क्या उसे उस चीज़ से मुक्त कराना हमारा फर्ज़ नहीं?
क्या किसी ने सोचा कि उसे Rehabilitation Centre भेजा जाए? कि उसे काउंसलिंग दी जाए?
कि उसकी जिंदगी भी सुधर सकती है?
और न ही किसी ने ये पूछना ज़रूरी समझा कि—
“तुम्हें कुछ चाहिए?”
“तुम ठीक हो?”
“तुम्हारे परिवार में कौन है?”
“तुम्हारा असली नाम क्या है?”
“अगर तुम्हें काम करने का मौका मिले तो क्या करोगे?”
“तुम्हें जिंदगी से क्या चाहिए?”
यही तो असली सवाल हैं… वो सवाल जो किसी कैमरे में रिकॉर्ड नहीं होते पर किसी की जिंदगी बदल सकते हैं।
Dhoom इस एक वायरल नाम के पीछे एक इंसान छुपा है। लोगों ने उसे ढूंढ तो लिया लेकिन उसकी जरूरतों को पूछना आज भी किसी ने ज़रूरी नहीं समझा।
यहां ज़रूरत है कि जिला प्रशासन भी इस तरह के लोगों पर नज़र रखे जो सड़क पर दिन गुज़ारते हैं जिनका कोई सहारा नहीं जो पूरी तरह बेसहारा हैं और नशे की वजह से अपनी जिंदगी और भी कठिन बना लेते हैं। उनकी मदद करना जरूरी है। उन्हें इन आदतों से बाहर निकालना जरूरी है।


